Saraswati Puja is gonna Come soon !!


Guys In January 2012,Maa Saraswati Puja is coming soon at 28th of January. Saraswati Puja is celebrated every year on the fifth day of the Indian month Magh, the first day of spring.


Artist are on hard work for making Lots of Statue of Maa saraswati for her Worship. So, There are some Pic which I have takken from Hastsal Near of my Location. Where artist are on fire to make lots of Dummy of maa saraswati.

 
 As Show in above Picture, The Dummy are approximately ready for sale after colouring it.

There is two more pic which I have takken from Nearest area.



So, With this joy and excitement of saraswati Puja, Come and Lets Pray to Maa Saraswati for a Good and Sueccessfull year 2012.

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माँ सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती हैं, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का भी विधान है।
कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करने के बाद वीणावादिनी माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। सुविधा के लिए माँ सरस्वती के आराधना स्तोत्र उपलब्ध हैं। 

माँ सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती हैं, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का भी विधान है।  
   

सरस्वती प्रार्थना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥


जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥


शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥
सनातन धर्म की कुछ अपनी विशेषताएं है। इन्हीं विशेषताओं के कारण उसे जगत् में इतनी ऊंची पदवी प्राप्त थी। इसके हर रीति-रिवाज,पर्व,त्योहार और संस्कार में महत्वपूर्ण रहस्य छिपा रहता है, जो हमारे जीवन की किसी न किसी समस्या का समाधान करता है, हमारे मानसिक व आत्मिक विकास का साधन बनता है, शारीरिक व बौद्धिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है, विचारों को एक नया मोड़ देता है। हमारे अधिकांश त्योहारों का किसी न किसी देवता की पूजा और उपासना से संबंध है। वसंत पंचमी का त्योहार विशेष रूप से ऋतु परिवर्तन के उपलक्ष्य में एक सामाजिक समारोह के रूप में मनाया जाता है। यह मानसिक उल्लास और आह्लाद के भावों को व्यक्त करने वाला त्योहार है। भारतवर्ष में वसंत का अवसर बहुत ही सुहावना, सौंदर्य का विकास करने वाला और मन की उमंगों में वृद्धि करने वाला माना जाता है। वसंत पंचमी का त्योहार माघ शुक्ल पंचमी को ऋतुराज वसंत के स्वागत के रूप में मनाया जाता है। मनुष्य ही नहीं जड़ और चैतन्य प्रकृति भी इस महोत्सव के लिए इसी समय से नया श्रृंगार करने लग जाती है। वृक्षों और पौधों में पीले, लाल और नवीन पत्ते तथा फूलों में कोमल कलियां दिखलाई पड़ने लगती हैं। आम के वृक्षों का सौरभ चारों ओर बिखरने लगता है। सरसों के फूलों की शोभा धरती को वासंती चुनरियां ओढ़ा देती है। कोयल और भ्रमर भी अपनी मधुर संगीत आरंभ कर देते है। वसंत आगमन के समय जब शीत का अवसान होकर हमारी देह और मन नई शक्ति का अनुभव करने लगते है, हमें अपना ध्यान जीवन के महत्वपूर्ण कार्यो में सफलता प्राप्ति के लिए उपयुक्त रणनीति बनाने के लिए लगाना चाहिए। संभवतया इसी कारण ऋषियों ने वसन्त पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की प्रथा चलाई थी। 

प्राकटयेन सरस्वत्या वसंत पंचमी तिथौ। विद्या जयंती सा तेन लोके सर्वत्र कथ्यते॥ 

वसंत पंचमी तिथि में भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण संसार में सर्वत्र इसे विद्या जयंती कहा जाता है। सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। भगवती सरस्वती के जन्म दिन पर अनेक अनुग्रहों के लिए कृतज्ञता भरा अभिनंदन करे। उनकी कृपा का वरदान प्राप्त होने की पुण्य तिथि हर्षोल्लास से मनाएं यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों को मानवी आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय त8ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्ति को मानुषी आकृति और भाव गरिमा से संजोया है। इनकी पूजा,अर्चन-वंदन, धारणा हमारी चेतना को देवगरिमा के समान ऊंचा उठा देती है। साधना विज्ञान का सारा ढांचा इसी आधार पर खड़ा है। 

माँ सरस्वती के हाथ में पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति के लिए स्वाध्याय की अनिवार्यता की प्रेरणा देता है। अपने देश में यह समझा जाता है कि विद्या नौकरी करने के लिए प्राप्त की जानी चाहिए। 

यह विचार बहुत ही संकीर्ण है। विद्या मनुष्य के व्यक्तित्व के निखार एवं गौरवपूर्ण विकास के लिए है। पुस्तक के पूजन के साथ-साथ ज्ञान वृद्धि की प्रेरणा ग्रहण करने और उसे इस दिशा में कुछ कदम उठाने का साहस करना चाहिए। स्वाध्याय हमारे दैनिक जीवन का अंग बन जाए, ज्ञान की गरिमा समझने लग जाएं और उसके लिए मन में तीव्र उत्कण्ठा जाग पड़े तो समझना चाहिए कि पूजन की प्रतिक्रिया ने अंत:करण तक प्रवेश पा लिया। कर कमलों में वीणा धारण करने वाली भगवती वाद्य से प्रेरणा प्रदान करती हैं कि हमारी हृदय रूपी वीणा सदैव झंकृत रहनी चाहिए। हाथ में वीणा का अर्थ संगीत, गायन जैसी भावोत्तेजक प्रक्रिया को अपनी प्रसुप्त सरसता सजग करने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए। हम कला प्रेमी बनें, कला पारखी बनें, कला के पुजारी और संरक्षक भी। माता की तरह उसका सात्विक पोषण पयपान करे। कुछ भावनाओं के जागरण में उसे संजोये। जो अनाचारी कला के साथ व्यभिचार करने के लिए तुले है, पशु प्रवृत्ति भड़काने और अश्लीलता पैदा करने के लिए लगे है उनका न केवल असहयोग करे बल्कि विरोध, भ‌र्त्सना के अतिरिक्त उन्हे असफल बनाने के लिए भी कोई कसर बाकी न रखें। मयूर अर्थात् मधुरभाषी। हमें सरस्वती का अनुग्रह पाने के लिए उनका वाहन मयूर बनना ही चाहिए। मीठा, नम्र, विनीत, सज्जानता, शिष्टता और आत्मीयता युक्त संभाषण हर किसी से करना चाहिए। प्रकृति ने मोर को कलात्मक, सुसज्जिात बनाया है। हमें भी अपनी अभिरुचि परिष्कृत बनानी चाहिए। हम प्रेमी बनें, सौन्दर्य, सुसज्जाता, स्वच्छता का शालीनतायुक्त आकर्षण अपने प्रत्येक उपकरण एवं क्रियाकलाप में बनाए रखें। तभी भगवती सरस्वती हमें अपना पार्षद, वाहन, प्रियपात्र मानेंगी। माँ सरस्वती की प्रतीक प्रतिमा मूर्ति अथवा तस्वीर के आगे पूजा-अर्चना का सीधा तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को स्वीकार शिरोधार्य किया जाए। उनको मस्तक झुकाया जाए, अर्थात् मस्तक में उनके लिए स्थान दिया जाए। सरस्वती की कृपा के बिना विश्व का कोई महत्वपूर्ण कार्य सफल नहीं हो सकता। प्राचीनकाल में जब हमारे देशवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना और पूजा करते थे, तो इस देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी। दूर-दूर से लोग यहां सत्य ज्ञान की खोज में आते थे और भारतीय गुरुओं के चरणों में बैठकर विद्या सीखते थे, पर उसके बाद जब यहां के लोगों ने सरस्वती की उपासना छोड़ दी और वे वसंत पर्व को सरस्वती पूजा के बजाय कामदेव की पूजा का त्योहार समझने लगे और उस दिन मदन महोत्सव मानने लगे, तब से विद्या बुद्धि का ह्रास होने लगा और अंत में ऐसा समय भी आया जब यहां के विद्यार्थियों को ही अन्य देशों में जाकर अपने ज्ञान की पूर्ति करनी पड़ी। ज्ञान की देवी भगवती के इस जन्मदिन पर यह अत्यंत आवश्यक है कि हम पर्व से जुड़ी हुई प्रेरणाओं से जन-जन को जोड़ें। विद्या के इस आदि त्योहार पर हम ज्ञान की ओर बढ़ने के लिए नियमित स्वाध्याय के साथ-साथ दूसरों तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचाने के लिए संकल्पित हों। 

विद्या की अधिकाधिक सब जगह अभिवृद्धि देखकर भगवती सरस्वती प्रसन्न होती है। वसंत का त्योहार हमारे के लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी जो लोग उसी दिन से पशुता से मनुष्यता, अज्ञान से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करते है और जिन्होंने तप, त्याग और अध्यवसाय से इन्हे प्राप्त किया है उनका सम्मान करते है। संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भागीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते है। श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला भी श्रेष्ठ होता है। इसीलिए आइए हम इस शुभ अवसर पर उत्तम मार्ग का अनुसरण करे।


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